जन्म कुंडली से जानें कौन सा रत्न पहुंचा सकता है व्यक्ति को उचाईयो तक ।।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के जीवन को सफल व सुदृढ़ बनाने में नव रत्नों की अहम भूमिका मानी गई है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर ग्रह व हर राशि का अपना एक रत्न होता है, जो व्यक्ति के जीवन में आए अशुभ प्रभाव को दूर कर शुभ फल प्रदान करता है। यदि आप भी अपनी कुंडली में मौजूद अशुभ ग्रहों व् दोषों के बारे में जानना चाहते हैं तो हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषियों से संपर्क करने के लिए यहाँ www.rjyotishi.com क्लिक करें।
रत्न व्यक्ति के अंदर बसे आलस्य को दूर कर उसे मजबूत और शक्तिशाली इंसान बनाने में अहम भूमिका अदा करता है। साथ ही, उसकी मानसिक स्थिति को मजबूत करता है। परंतु रत्नों को धारण करने के लिए उनके नियम जानना बहुत ही जरूरी होता है कि कौन से लग्न व राशि के जातक कौन सा रत्न धारण कर सकते हैं।
प्रमाणित रूप से देखा जाए तो रत्न सुंदरता की वस्तु न होकर प्राणवान ऊर्जा के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। शुभ रत्नों का चयन जन्म कुंडली में शुभ ग्रहों और लग्न की राशि के अनुसार करना चाहिए, अन्यथा प्रतिकूल रत्न लाभ के बजाय हानि भी कर सकता है। कई रत्न बड़े प्रभावशाली होते हैं और वे अपना प्रभाव तुरंत दिखाते है।
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रत्न पहनने के पहले इन महत्वपूर्ण बातों को भी जान लें
रत्न पहनने के लिए दशा-महादशाओं का अध्ययन भी जरूरी है। केंद्र या त्रिकोण के स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है। जन्म कुंडली में त्रिकोण सदैव शुभ होता है इसलिए लग्नेश, पंचमेश व नवमेश का रत्न धारण किया जा सकता है। यदि इन तीनों में कोई ग्रह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो तो रत्न धारण नहीं करना चाहिए।
यदि शुभ ग्रह अस्त या निर्बल हो, तो उसका रत्न पहनें ताकि उस ग्रह के प्रभाव को बढ़ाकर शुभ फल दे। यदि लग्न कमजोर है या लग्नेश अस्त है, तो लग्नेश का रत्न पहनें। यदि भाग्येश निर्बल या अस्त है, तो भाग्येश का रत्न पहनें। लग्नेश का रत्न जीवन-रत्न, पंचमेश का कारक-रत्न और नवमेश का भाग्य-रत्न कहलाता है। त्रिकोण का स्वामी यदि नीच का है, तो वह रत्न न पहने। कभी भी मारक, बाधक, नीच या अशुभ ग्रह का रत्न न पहनें। सभी रत्न शुक्ल पक्ष में निर्धारित वार व होरा में धारण किए जाने चाहिए।
जन्म लग्न के अनुसार करें रत्नों का चयन करना चाहिए
मेष लग्न
इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न मूंगा है, जिसे शुक्ल पक्ष में किसी भी मंगलवार को मंगल की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर सोने में अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए।
मंत्र- ऊँ भौं भौमाय नमः
लाभ– मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता है और रक्त, साहस और बल में वृद्धि होती है। महिलाओं के शीघ्र विवाह में यह रत्न सहयोग करता है। प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाता है। बच्चों में नजर दोष दूर करता है। वृश्चिक लग्न वाले भी इसे धारण कर सकते हैं।
वृष लग्न
इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न हीरा तथा राजयोग कारक रत्न नीलम है। हीरा को शुक्ल पक्ष में किसी शुक्रवार के दिन शुक्र की होरा में जाग्रत कर धारण करना चाहिए।
मंत्र- ऊँ शुं शुक्राय नमः
लाभ– हीरा धारण करने से स्वास्थ्य व साहस प्रदान करता है। व्यक्ति समझदार बनाता है। यह रत्न शीघ्र विवाह में मदद करता है। अग्नि भय व चोरी से बचाता है। महिलाओं में गर्भाशय के रोग दूर करता है। पुरुषों में वीर्य दोष मिटाता है। कहा गया है कि पुत्र की कामना रखने वाली महिला को हीरा धारण नहीं करना चाहिए। वे महिलाएं जो पुत्र संतान चाहती हैं या जिनके पुत्र संतान है उन्हें परीक्षणोपरांत ही हीरा धारण करना चाहिए। इसे तुला लग्न वाले जातक भी धारण कर सकते हैं।
मिथुन लग्न
इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न पन्ना है, जिसे बुधवार को बुध की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर पहनना चाहिए।
मंत्र- ऊँ बुं बुधाय नमः
लाभ- पन्ना निर्धनता दूर कर शांति प्रदान करता है। परीक्षाओं में सफलता दिलाता है। खांसी व अन्य गले संबंधी बीमारियों को दूर करता है। इसे धारण करने से एकाग्रता विकसित होती है। यह काम, क्रोध आदि मानसिक विकारों को दूर करके अत्यंत शांति दिलाता है। कन्या लग्न वाले जातक भी इसे धारण कर सकते हैं।
कर्क लग्न
इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न मोती है, जिसे सोमवार के दिन प्रातः चंद्र की होरा में पहनना चाहिए। पहनने के पहले रत्न को निम्न मंत्र से अवश्य जाग्रत कर लेना चाहिए।
मंत्र- ऊँ सों सोमायनमः
लाभ– मोती धारण करने से स्मरण शक्ति प्रखर होती है। बल, विद्या व बुद्धि में वृद्धि होती है। क्रोध व मानसिक तनाव शांत होता है। अनिद्रा, दांत व मूत्र रोग में लाभ होता है। पुरुषों का विवाह शीध्र कराता है तथा महिलाओं को सुमंगली बनाता है।
इस लग्न वाले यदि मूंगा भी धारण करें तो अत्यंत लाभ देता है, क्योंकि मूंगा इस लग्न वाले व्यक्ति का राजयोग कारक रत्न होता है।
सिंह लग्न
इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न माणिक्य है। इसे रविवार को प्रातः रवि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए।
मंत्र- ऊँ घृणि सूर्याय नमः
लाभ– माणिक्य धारण करने से साहस में वृद्धि होती है। भय, दुःख व अन्य व्याधियों का नाश होता है। नौकरी में उच्चपद व प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। अस्थि विकार व सिर दर्द की समस्या से निजात मिलती है।
इस लग्न वाले व्यक्ति यदि मूंगा भी धारण करे, तो अत्यंत लाभ देता है। क्योंकि इस लग्न वाले व्यक्ति का मूँगा राजयोग कारक रत्न होता है।
कन्या लग्न
इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न पन्ना है, जिसे बुधवार को बुध की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर पहनना चाहिए।
मंत्र- ऊँ बुं बुधाय नमः
लाभ– पन्ना निर्धनता दूर कर शांति प्रदान करता है। परीक्षाओं में सफलता दिलाता है। खांसी व अन्य गले संबंधी बीमारियों को दूर करता है। इसे धारण करने से एकाग्रता विकसित होती है। यह काम, क्रोध आदि मानसिक विकारों को दूर करके अत्यंत शांति दिलाता है। कन्या लग्न वाले जातक भी इसे धारण कर सकते हैं।
इस लग्न के लिए पन्ना, हीरा, नीलम रत्न भी शुभ होता है।
क्या आपकी कुंडली में भी मौजूद है राज योग
तुला लग्न
इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न हीरा तथा राजयोग कारक रत्न नीलम है। हीरा को शुक्ल पक्ष में किसी शुक्रवार को शुक्र की होरा में जाग्रत कर धारण करना चाहिए।
मंत्र- ऊँ शुं शुक्राय नमः
लाभ- हीरा धारण करने से स्वास्थ्य व साहस प्रदान करता है। व्यक्ति समझदार बनाता है। यह रत्न शीघ्र विवाह में मदद करता है। अग्नि भय व चोरी से बचाता है। महिलाओं में गर्भाशय के रोग दूर करता है। पुरुषों में वीर्य दोष मिटाता है। कहा गया है कि पुत्र की कामना रखने वाली महिला को हीरा धारण नहीं करना चाहिए। वे महिलाएं जो पुत्र संतान चाहती हैं या जिनके पुत्र संतान है उन्हें परीक्षणोपरांत ही हीरा धारण करना चाहिए। इसे तुला लग्न वाले जातक भी धारण कर सकते हैं।
इस लग्न के लिए हीरा, ओपेल रत्न भी शुभ होता है।
वृश्चिक लग्न
इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न मूंगा है, जिसको शुक्ल पक्ष में किसी मंगलवार को मंगल की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर सोने में अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए।
मंत्र- ऊँ भौं भौमाय नमः
लाभ- मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता है और रक्त, साहस और बल में वृद्धि होती है। महिलाओं के शीघ्र विवाह में यह रत्न सहयोग करता है। प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाता है। बच्चों में नजर दोष दूर करता है। वृश्चिक लग्न वाले भी इसे धारण कर सकते हैं।
धनु लग्न
इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न पुखराज है, जिसे शुक्ल पक्ष के किसी गुरुवार को प्रातः गुरु की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए।
मंत्र- ऊँ बृं बृहस्पतये नमः
लाभ– पुखराज धारण करने से बल, बुद्धि, ज्ञान, यज्ञ व मान-सम्मान में वृद्धि होती है। पुत्र संतान देता है। पापकर्म करने से बचाता है। अजीर्ण प्रदर, कैंसर व चर्मरोग से मुक्ति दिलाता है।
मकर लग्न
इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न नीलम है, जिसे शनिवार के दिन प्रातः शनि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए।
मंत्र- ऊँ शं शनैश्चराये नमः
लाभ– नीलम धारण करने से धन, सुख व प्रसिद्धि में वृद्धि करता है। मन में सद्विचार लाता है। संतान सुख प्रदान करता है। वायु रोग, गठिया व हर्निया जैसे रोग में लाभ देता है। नीलम को धारण करने के पूर्व परीक्षण अवश्य करना चाहिए। नीलम धारण करने से पूर्व कुशल ज्योतिषाचार्य से सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।
कुम्भ लग्न
ज्योतिष में मकर और कुम्भ राशि के स्वामी शनि हैं, इसीलिए दोनों राशि के जातकों के लिए एक ही रत्न पहनने का सुझाव दिया जाता है। कुंभ लग्न वाले जातकों के लिए भी अनुकूल रत्न नीलम है, जिसे शनिवार के दिन प्रातः शनि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए।
मंत्र- ऊँ शं शनैश्चराये नमः
लाभ– नीलम धारण करने से धन, सुख व प्रसिद्धि में वृद्धि करता है। मन में सद्विचार लाता है। संतान सुख प्रदान करता है। वायु रोग, गठिया व हर्निया जैसे रोग में लाभ देता है। नीलम को धारण करने के पूर्व परीक्षण अवश्य करना चाहिए। नीलम धारण करने से पूर्व कुशल ज्योतिषाचार्य से सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।
मीन लग्न
इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न पुखराज है, जिसे शुक्ल पक्ष के किसी गुरुवार को प्रातः गुरु की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए।
मंत्र- ऊँ बृं बृहस्पतये नमः
लाभ- पुखराज धारण करने से बल, बुद्धि, ज्ञान, यज्ञ व मान-सम्मान में वृद्धि होती है। पुत्र संतान देता है। पापकर्म करने से बचाता है। अजीर्ण प्रदर, कैंसर व चर्मरोग से मुक्ति दिलाता है।
रत्नों से जुड़ी कुछ विशेष बातें
जिस कन्या का विवाह न हो रहा हो उसे रत्न अवश्य धारण करना चाहिए परंतु उसकी लग्न या राशि, धनु या मीन होनी चाहिए। रत्न धारण करने में हाथ का चयन चिकित्सा शास्त्र की मान्यता है कि पुरुष का दायां हाथ व महिला का बांया हाथ गर्म होता है। इसी प्रकार पुरुष का बांया हाथ व महिला का दांया हाथ ठंडा होता है।
रत्न भी अपनी प्रकृति के अनुसार ठंडे व गर्म होते हैं। यदि ठंडे रत्न, ठंडे हाथ में व गर्म रत्न गर्म हाथ में धारण किये जाएं तो आशातीत लाभ होता है।
प्रकृति के अनुसार गर्म रत्न– पुखराज, हीरा, माणिक्य, मूंगा ।
प्रकृति के अनुसार ठंडे रत्न– मोती, पन्ना, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
रत्न मर्यादा का भी रखें ध्यान
रत्न को धारण करने के बाद उसकी मर्यादा बनायी रखनी चाहिए। अशुद्ध स्थान, दाह-संस्कार आदि में रत्न पहन कर नहीं जाना चाहिए। यदि उक्त स्थान में जाना हो, तो उसे उतार कर देव-स्थान में रखना चाहिए तथा पुनः निर्धारित समय में धारण करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि रत्न शुक्ल पक्ष के दिन निर्धारित वार की निर्धारित होरा में धारण किये जाएं। खंडित रत्न कदापि धारण नहीं करना चाहिए।
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