हमारे ऋषियों, महर्षियों और शास्त्रकारों ने इस आधार पर यज्ञोपवीत का परिमाण किया कि धारण करने पर वह पुरुष के बायें कन्धेके ऊपर से आता हुआ नाभि को स्पर्श कर कटितक ही पहुचे।छोटा होने पर आयु तथा अधिक बड़ा होनेपर तपका विनाश होता है।अधिक मोटा या पतला होने पर यश और धन की हानि होगी-
पृष्ठदेशे च नाभ्यां च घृतं यद्विन्दते कटिम,।
तद्धार्यमुपवितं स्यान्नतिलंबम न चोच्छितम।।
आयुर्हरत्यतिहृस्वमतिदिर्घ तपोहरम।
यशोहरत्यतिस्थूलमतिसूक्ष्मम धनापहम।।
समुद्रशास्त्र ने इसे उचित ठहराते हुए मनुष्य के कद को 84 से 108 अंगुलतक ही कहा गया है।इसका मध्यमान 96 अंगुल ही होता है।अतः इस माप वाला यज्ञोपवीत हर स्थिति में कटितक ही रहेगा।
2-गायत्रीमंत्र में चौबीस अक्षर होते है।चारो वेदोंमें व्याप्त गायत्रिछन्द के सम्पूर्ण अक्षरोको मिला दे तो 24×4=96होते है,इस आधार पर द्विजबालक को गायत्री और वेद दोनों का अधिकार प्राप्त होता है।इसलिए भी96 ही।
3-तत्व,गुण, तिथि,वार, नक्षत्र, काल,मास आदि विविध भागो से निरंतर सम्पर्क में रहने के कारण मनुष्य का जीवन प्रभावित होता रहता है।इन सभी पदार्थों की संख्या का समन्वित योग किया जाय तो आश्चर्य होगा कि यह भी 96 ही होता है।
सत, रज और तमोगुण त्रिविध शरीर में प्रकृतिप्रदत्त पाँच भूत,पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच प्राण और चार अन्तः करण का योग-24तत्वों का समावेश रहता है।तीन ग्रन्थियाँ स्थूल,सूक्ष्म और कारण तथा गायत्रीमंत्र का योग भी 72+24=96आता है
हमारा शरीर 25 तत्वों से बना है।इसमें सत्व,रज, और तम ये तीन गुण सर्वदा व्याप्त रहते है।फलतः तिथि-15 वार-7 नक्षत्र-27तत्व-25वेद-4 गुण-3और मास-12इनका कुल योग96 ही आता है।यह वैज्ञानिकता से कितना परिपूर्ण है और हमारे ऋषियों की दृष्टि कितनी सूक्ष्म थी ।लेकिन आज आधुनिकता ने हमारे आखो को अंधा कर दिया जिससे इससे दूर होकर दुष्परिणाम को भोग रहे है।